जनजातीय कार्य मंत्रालय ने ‘आदि वाणी’ का बीटा संस्करण लॉन्च किया – यह भारत का पहला एआई-संचालित जनजातीय भाषाओं का अनुवादक है।
“आदि वाणी” जनजातीय भाषाओं में शिक्षा, सुशासन और उद्यमिता तक पहुँच को बढ़ाने में सहायक होगा।
आदि वाणी एआई-संचालित अनुवादक होने के साथ साथ विभिन्न समुदायों को जोड़ने और सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने वाला एक मंच है।
यह पहल संकटग्रस्त भाषाओं के डिजिटलीकरण का समर्थन करेगी, मातृभाषाओं में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सुशासन तक पहुँच को बेहतर बनाएगी, जनजातीय उद्यमिता को बढ़ावा देगी और शोधकर्ताओं के लिए ज्ञान का स्रोत बनेगी।
आदि वाणी का विकास एक राष्ट्रीय संघ द्वारा किया गया है, जिसका नेतृत्व आईआईटी दिल्ली कर रहा है। इसमें बिट्स पिलानी, आईआईआईटी हैदराबाद, आईआईआईटी नवा रायपुर और झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मेघालय के जनजातीय अनुसंधान संस्थान (TRIs) शामिल हैं।
आदि वाणी-एआई टूल वेब पोर्टल https://adivaani.tribal.gov.in पर उपलब्ध है और इसका बीटा संस्करण जल्द ही प्ले स्टोर और iOS पर उपलब्ध होगा। बीटा लॉन्च चरण में यह संताली (ओडिशा), भीली (मध्य प्रदेश), मुंडारी (झारखंड) और गोंडी (छत्तीसगढ़) भाषाओं को सपोर्ट करता है, जबकि कुई और गारो पर काम चल रहा है।
एक लाइव डेमो भी प्रस्तुत किया गया, जिसमें भीली और गोंडी भाषाओं में वास्तविक समय में अनुवाद दिखाया गया। भागीदार TRIs के विशेषज्ञों ने अनुवाद को सत्यापित किया और प्रतिभागियों एवं हितधारकों के साथ संवाद किया।
आदि वाणी की मुख्य विशेषताएँ:
- हिंदी, अंग्रेज़ी और जनजातीय भाषाओं के बीच रियल-टाइम टेक्स्ट और स्पीच अनुवाद
- छात्रों और शुरुआती शिक्षार्थियों के लिए इंटरैक्टिव भाषा सीखने के मॉड्यूल
- लोककथाओं, मौखिक परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर का डिजिटलीकरण
- जनजातीय भाषाओं में सरकारी संदेश, स्वास्थ्य संबंधी जानकारी और प्रधानमंत्री के भाषणों के सबटाइटल्स
- मातृभाषाओं में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सुशासन तक समावेशी पहुँच
- विकसित भारत 2047 की दिशा में कदम
भारत की जनजातीय भाषाई धरोहर को डिजिटलीकृत और संरक्षित करके, आदि वाणी डिजिटल इंडिया, एक भारत श्रेष्ठ भारत, पीएम जनमन, आदि कर्मयोगी अभियान और धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान की दृष्टि से जुड़ा हुआ है। यह मंच कम-संसाधन भाषाओं के संरक्षण का एक अग्रणी वैश्विक मॉडल प्रस्तुत करता है और 20 लाख से अधिक जनजातीय परिवर्तनकर्ताओं को एक समावेशी, ज्ञान-आधारित विकसित भारत 2047 के निर्माण में सशक्त बनाने की अपेक्षा रखता है।