केरल के कोट्टायम ज़िले के पेरुना में 2 जनवरी, 1878 को जन्मे पद्मनाभन ने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों का नेतृत्व किया।
पद्मनाभन को दक्षिण भारत के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक माना जाता था। उन्होंने नायर समुदाय के लोगों को बुरे रीति-रिवाजों से दूर रहने और सभी के लिए समान अधिकारों की लड़ाई लड़ी। वे वायकोम और गुरुवायूर मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए हुए आंदोलनों के प्रमुख नेता थे। इन आंदोलनों ने भारत में जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई को एक नई दिशा दी।
स्वतंत्रता संग्राम में भी पद्मनाभन ने सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य के रूप में काम किया और अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में भाग लिया। 1947 में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया था।
पद्मनाभन ने नायर सर्विस सोसाइटी की स्थापना की और केरल कॉन्ग्रेस के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत सरकार ने उनके योगदान को देखते हुए उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया और उन्हें भारत केसरी की उपाधि दी।
मन्नथू पद्मनाभन का निधन 25 फरवरी, 1970 को हुआ था, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। वे एक ऐसे नेता थे जिन्होंने समाज के हर वर्ग के लिए समानता और न्याय की लड़ाई लड़ी।